Thursday, August 27, 2015

जाति आधारित जनगणना की जरूरत क्यों?


navbharattimes.indiatimes.com

जाति आधारित जनगणना की जरूरत क्यों? - Navbharat Times

सरकार ने
जनगणना के धार्मिक आंकड़े अचानक जारी कर देश को चौंका दिया है। समझना मुश्किल है कि दो जनगणनाओं के ठीक बीच में अलग से धर्म संबंधी आंकड़ों को प्रचारित करने का क्या तुक है? यह कोई रुटीन सरकारी कवायद नहीं है।
ऐसा भी नहीं है कि इसकी कोई मांग हो रही थी। मांग जाति आधारित आंकड़ों की जरूर है, लेकिन उस पर सरकार का ध्यान नहीं है। इसलिए इस घोषणा की मंशा को लेकर सवाल उठना लाजमी है। उग्र हिंदू छवि वाले कुछ बीजेपी नेताओं ने आंकड़ों को लेकर अपनी राजनीति भी शुरू कर दी है। उनका कहना है कि देश में मुसलमानों की तादाद इतनी तेजी से बढ़ रही है कि देर-सबेर हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएंगे।
मंगलवार को रजिस्ट्रार जनरल एंड सेंसस कमिश्नर द्वारा पेश सूचनाओं पर नजर डालें तो भारत में मुसलमानों की जनसंख्या अपेक्षाकृत तेज रफ्तार से बढ़ी है, पर इसका दूसरा पहलू यह है कि मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर हिंदुओं की तुलना में ज्यादा तेजी से नीचे आ रही है। वर्ष 1981-1991 में उनकी जनसंख्या बढ़ने की दर 32.9 फीसदी थी, जो 1991-2001 में घटकर 29.3 फीसदी और 2001-11 के ताजा आंकड़ों में 24.6 फीसदी पर पहुंच गई है। उधर हिंदुओं की जनसंख्या बढ़ने की दर वर्ष 1981-1991 में 22.8 फीसदी थी, जो 1991-2001 में घटकर 20 फीसदी हो गई और 2001-11 के आंकड़ों में 16.8 फीसदी हो गई है।

गौर से देखें तो 1991 से 2011 तक के बीस वर्षों में हिंदू जनसंख्या वृद्धि दर में 6.0 प्रतिशत की, जबकि मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर में 8.3 प्रतिशत की गिरावट आई है। इससे इस अफवाह का खंडन अपने आप हो जाता है कि धार्मिक सोच के तहत मुसलमान भारत में अपनी आबादी बढ़ाने में जुटे हैं। आंकड़ों का निहितार्थ सिर्फ इतना है कि भारत के सभी समुदायों में आबादी बढ़ने की रफ्तार कम हो रही है, लेकिन जहां शिक्षा और विकास में भागीदारी ज्यादा है, वहां लोग एक या दो बच्चों पर ही संतोष कर ले रहे हैं।
बारीकियों में जाएं तो इन आंकड़ों से असम में और एक हद तक प. बंगाल में बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ का जायजा मिलता है। इस मामले में ज्यादा सख्ती बरतने की जरूरत है। जहां तक इस सरकारी घोषणा के राजनीतिक निहितार्थ का प्रश्न है तो यह बिहार विधानसभा चुनाव और गुजरात समेत कई राज्यों में शुरू हुए आरक्षण आंदोलनों से जुड़ा है। जब-जब देश में जाति संबंधी प्रश्न उठते हैं, चाहे वे जायज हों या नाजायज, उन्हें ठंडा करने के लिए हिंदुत्ववादी ताकतें हिंदू भयग्रंथि जगाने का दांव आजमाती रही हैं।
1990 में मंडल अनुशंसाओं के सामने उन्होंने मंदिर आंदोलन का तूमार बांधा था, जबकि इस बार सरकार में होने की वजह से उन्होंने धार्मिक जनगणना के आंकड़े जारी करने का तरीका अपनाया है। लेकिन भारतीय जनमत अब ऐसे भुलावों में नहीं आने वाला। सरकारों का वजन लोग अब उनके कामकाज के आधार पर ही तय करते हैं, लिहाजा सरकार चलाने वाले राजनीतिक दलों को भी अपना सारा ध्यान इसी पर केंद्रित रखना चाहिए।

No comments:

Post a Comment