दिल्ली के तिलक नगर में रविवार शाम जिस तरह भीड़ भरी सड़क पर एक बाइक सवार
लड़के ने एक डीयू स्टूडेंट के साथ छेड़छाड़ की, उसे अश्लील इशारे किए और
शिकायत की चेतावनी दिए जाने पर 'जो कर सकती है कर ले, बाद में देखियो मैं
क्या करता हूं' की जवाबी धमकी दी, वह राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर महिला
सुरक्षा के हालात की जीती-जागती तस्वीर पेश कर देता है।
दोस्तों-रिश्तेदारों के दुख-सुख में शामिल होना फिजूल समझते हैं, लेकिन यू-ट्यूब पर अपना ही वीडियो देखने में घंटों गुजार देते हैं। सोशल मीडिया पर अपने कॉमेंट में हम चाहे जितना भी आदर्श बघार लें, मगर हमारी गतिविधियों का ब्योरा कम से कम खुद की नजरों में तो हमारी पोल खोल ही देता है। अपनी अलग-अलग मुद्राओं वाली सेल्फियां और अपने परिवार की छोटी से छोटी उपलब्धि का बखान यह बताने के लिए काफी है कि हमारा नजरिया किस कदर स्वकेंद्रित होता जा रहा है। ये कमियां सोशल मीडिया की नहीं, हमारे समय और समाज की हैं। अगर हम इनसे उबर सके तो शायद सोशल मीडिया का भी कहीं बेहतर इस्तेमाल कर सकें।
इस मामले में कोई अच्छी बात है तो यही कि लड़की ने पूरी बहादुरी से उस
लड़के का सामना किया, उसकी तस्वीर और बाइक नंबर के साथ पूरी घटना का ब्योरा
फेसबुक पर डाला। सोशल मीडिया पर इस पोस्ट को जबर्दस्त लाइक्स और शेयर
मिले। नतीजा यह कि दिल्ली पुलिस ने घटना का संज्ञान लिया और लड़की द्वारा
शिकायत दर्ज कराने के बाद लड़के को गिरफ्तार भी कर लिया गया। लेकिन लाइक्स
से पहले की कहानी का एक पक्ष यह भी है कि उस चौराहे पर घटना के समय 20 से
ज्यादा लोग मौजूद थे, ट्रैफिक सिग्नल रेड होने की वजह से वे सब लड़के की
हरकतें और लड़की का विरोध देख रहे थे, मगर किसी ने लड़की के पक्ष में बोलने
की जरूरत महसूस नहीं की।
इस तरह यह घटना हमारे मौजूदा समाज की
विसंगतियों का आईना बन कर उभरी है। रियल वर्ल्ड में एक समाज के तौर पर हम
जिन-जिन कमजोरियों से ग्रस्त हैं, उन सबकी भरपाई वर्चुअल वर्ल्ड में करते
हैं और इसे पर्याप्त मानकर गौरवान्वित भी होते हैं। पड़ोस में किसी के घर
लूटपाट हो जाए तो हम नींद का बहाना किए पड़े रहते हैं, लेकिन अगले दिन
फेसबुक पर पुलिस की भर्त्सना करने में कोई कमी नहीं छोड़ते। दोस्तों-रिश्तेदारों के दुख-सुख में शामिल होना फिजूल समझते हैं, लेकिन यू-ट्यूब पर अपना ही वीडियो देखने में घंटों गुजार देते हैं। सोशल मीडिया पर अपने कॉमेंट में हम चाहे जितना भी आदर्श बघार लें, मगर हमारी गतिविधियों का ब्योरा कम से कम खुद की नजरों में तो हमारी पोल खोल ही देता है। अपनी अलग-अलग मुद्राओं वाली सेल्फियां और अपने परिवार की छोटी से छोटी उपलब्धि का बखान यह बताने के लिए काफी है कि हमारा नजरिया किस कदर स्वकेंद्रित होता जा रहा है। ये कमियां सोशल मीडिया की नहीं, हमारे समय और समाज की हैं। अगर हम इनसे उबर सके तो शायद सोशल मीडिया का भी कहीं बेहतर इस्तेमाल कर सकें।
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